कम आमदनी में सहज जीवन-निर्वाह कैसे करें
(How to make a comfortable living with low income)
वैसे तो सभी को ‘सादा जीवनः उच्च विचार’ के सिद्धान्त का पालन करना चाहिए, यदि अधिक धन-संसाधन हों तो भी उन्हें सद्कर्म में लगा देना चाहिए परन्तु फि़लहाल इस आलेख में हम कम आमदनी में भी जीवन-निर्वाह सरलता से कैसे किया जा सकता है इस बात पर ध्यान केन्द्रित करायेंगे, यहाँ लिखे बिन्दु निर्धन-धनी इत्यादि अन्य सम्भव समस्त वर्गों के लिये लागू व उपयोगी हैंः-
1. उन खर्चों की सूची बनायें जिनकी कोई उपयोगिता नहीं अथवा जो व्यर्थ हैं;
जैसे कि आते-जाते रास्ते में चाऊमीन, पानी-पुड़ी, चाय, गुटका, धूम्रपान इत्यादि; इनमें से व्यसनों को तो पूरी तरह से बन्द कर दिया जाना चाहिए किन्तु चाय इत्यादि में कमी लायी जा सकती है। सावधानियाँ ये बरतनी हैं कि बुज़ुर्गों व बच्चों की सहज-सामान्य व उनके लिये हानिरहित इच्छाओं को न मारें, अपने मन को ठीक से समझायें।
2. एक सूची अलग से बनाकर रखें :
जीवनोपयोगी वस्तुओं को क्रय करने के लिये एक सूची अलग से बनाकर रखें एवं घर में जब जो सामग्री समाप्त होने वाली हो उसे उसमें तुरंत लिख लें; इस प्रकार 100-200 ग्रॅम्स जितनी कम मात्रा एवं 1-2 जितनी कम संख्या में ख़रीदी के लिये बार-बार गाड़ी घुमाते अथवा अलग से यात्रा पर जाने एवं आवष्यक ख़रीद्दारी के साथ अनावष्यक वस्तुएँ डिस्काउण्ट अथवा लालच के चक्कर में ख़रीद लाने से भी बचाव हो जायेगा; समय व ईंधन की बचत तो होगी ही। जहाँ तक हो सके दुकानदार को दूरभाष द्वारा वस्तु-विवरण पहले ही लिखवा दें जिसे वह पहले से तैयार करके रखें एवं आप वहाँ जाकर जाँच-परखकर ले आयें।
3. आय-व्यय का लेखा-जोखा हर बार लिखकर बनाये रखेंः
कब कहाँ से कितनी आमदनी हुई एवं कहाँ कितना खर्चा हुआ इसे परिवार का हर सदस्य दैनिक रूप से लिखकर रखे। चाहें तो अलग-अलग लिखकर एक बड़ी डायरी में संकलित भी कर सकते हैं।
4. न्यूनतम में जीवन-निर्वाह को आदत बनायेंः मिनिमॅलिस्टिक लाइफ़स्टाइल अपनायें;
घर में कम उपयोगी अथवा ऐसी चीज़ों को किसी ज़रूरतमंद को दान कर दें अथवा सस्ते में बेच दें जिनके बिना भी आपका जीवन अच्छा बीत सकता है, जैसे कि दीवान, पलंग, पेटियाँ/अटैचियाँ, कई प्रकार की अल्मारियाँ इत्यादि; फिर आपको अनुभव होगा कि मन-तन व धन पर आपने व्यर्थ की इतना बोझा अब तक उठा रखा था, अब आपको घर व मस्तिष्क में पर्याप्त स्थान मिलेगा एवं संसाधनों को सदुपयोग (व अधिकतम सदुपयोग) की दिषा में आप लगा पायेंगे।
5. रिष्तेदारी-नातेदारी पर अंकुष लगायेंः
वैसे तो प्रथम बिन्दु में निरर्थक खर्चों को समाप्त करने की बात की जा चुकी है फिर भी रिष्तेदार-नातेदारी के नाम पर किये जाने वाले खर्चों को मिटाने अथवा न्यूनतम करने का उल्लेख अलग से करने की आवष्यकता अनुभव हुई क्योंकि अधिकांष परिवार वर्ष में एक-दो बार अथवा 2-3 वर्ष में एक बार ऐसे आयोजनों में व्यर्थ ही हज़ारों-लाखों रुपये खर्च कर डालते हैं (आते कहाँ से हैं ये रुपये?) तथा जब घर में मूलभूत आवष्यकता-पूर्ति (जैसे किसी की शल्यक्रिया करानी हो अथवा बच्चों के आने-जाने के लिये टॅक्सी-व्यवस्था करानी हो) की बात आये तो व्यक्ति अपनी छद्म अथवा आभासी ग़रीबी दिखाने लगता है कि ‘कड़की चल रही’ अथवा ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपइया’; रिष्तेदारों में उड़ाने अथवा सामाजिक दिखावे में खपाने के लिये 50 हज़ार आ गाये किन्तु परिजन की शल्यक्रिया के मात्र 20 हज़ार की व्यवस्था के नाम पर हज़ार बहाने!!!!